Wednesday, December 11, 2019

गज़ल तिरोही
हम इक पल में सदियाँ लुटा देते हैं
वक्त को हर जानिब महका लेते हैं
हर लम्हा मुहब्बत से सजा लेते हैं
जाने फिर मोहलत मिले न मिले
हर तस्वीर से दिल बहला लेते हैं
हम ग़ैरों से भी रिश्ते बना लेते हैं
पुराने जख़्म फिर से हरे न हो जाएं
वक्त रहते उन पे मरहम लगा लेते हैं
हम सबके गम सीने से लगा लेते हैं
ख़ुशबू लुटाने को जब खुदा कहता है
उसकी अदालत में सिर झुका लेते हैं
उसकी ख़ुशबू में खुदाई लूटा लेते हैं
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता
तिरोही गज़ल
कोई खूबसूरत सा शहर देख लेते
या दिल का मेरा ये नगर देख लेते
मुझे अपनी खुशबू में तर देख लेते
होश में रहकर के इश्क नहीं होता
दिल में मेरे तुम उतर कर देख लेते
अपनी मुहब्बत का असर देख लेते
सुकून इतना मिलता न दैरो हरम में
सुकून मिलता जो मेरे घर देख लेते
इश्क का तुम भी जिगर देख लेते
दूर तक फैल जाती खुशबू हमारी
मेरे प्यार करने का हुनर देख लेते
इन्तेहा ए इश्क का असर देख लेते
दैरो हरम - मंदिर मस्जिद
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता