दम ख़म जो हमने दिखाया न होता
जश्न तुमने ऐसा मनाया न होता।
बोली तुम्हारी ऊंची कैसे लगती
अगर दाम हमने लगाया न होता।
घरों से अँधेरे भी कभी न निकलते
सूरज ने मुंह जो दिखाया न होता।
हवा के मिजाज़ का पता न चलता
मुकद्दर ने अगर आजमाया न होता।
ख़्वाब ग़ाह का जाने हश्र क्या होता
अगर ख़्वाब कोई सजाया न होता।
मैकदे में, मैं लडखडाता ही रहता
जो आँखों से तुमने पिलाया न होता।
शाम के वक्त तो मैं भी बहल जाता
शाम ने अगर दिल दुखाया न होता।
Wednesday, March 7, 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment