Thursday, December 13, 2012

देखी राह तुम्हारी हमने
तन्हा रात गुज़ारी हमने !
पूरी रात टहल टहल कर
खुशबु पहनी तुम्हारी हमने !
दरवाज़े को तकते तकते
सारी रात गुज़ारी हमने !
ज़ुल्फ़ें यूं ही खुल गई थी
बिन शीशे के संवारी हमने !
पलकों में सजा रखी थी
एक तस्वीर न्यारी हमने !
नज़र उसकी दिल ही दिल में
कितनी बार उतारी हमने !
तुमको सोचा जब भी सोचा
जिंदगी सोच गुज़ारी हमने !
चाँद आया नहीं गोद में
देखी यह लाचारी हमने !
नींद ने आँख पे दस्तक न दी
लोरी बहुत पुकारी हमने !
पहरों करवट बदली हमने
ऐसे रात गुज़ारी हमने !

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