कसूर जो हों हमारे हिसाब लिख दो
गम हमारे नाम बेहिसाब लिख दो
शिफ़ा जिसने बख्शी है हंसने की हमें
अहसानों पर उसके किताब लिख दो।
मेरा तुम्हारा रिश्ता बेनाम तो नहीं
ज़माने को इसका जवाब लिख दो।
कुछ न बोलो कुछ भी न बताओ
आँखों में अपना ख्वाब लिख दो।
उसूलों पर कायम रह सकें दोनों
तहरीर एक ऐसी ज़नाब लिख दो।
बात ख़ुश्बू की तरह फ़ैल जाएगी
लफ्ज़ मेरे होठों पर गुलाब लिख दो।
Thursday, March 1, 2012
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