पर्दे के पीछे की असलियत देखता है वो
हाथ मिलाते हुए हैसियत देखता है वो।
वज़ूद कैसा है ,पहनावा कितना उम्दा है
गले लगते हुए शख्शियत देखता है वो।
ख़ुद तो फिरता है, गली गली मारा मारा
सब की मगर मिल्कियत देखता है वो।
गरूर है उसका या फितरत आदमी की
हर नज़र में अपनी अहमियत देखता है वो।
Tuesday, April 10, 2012
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