जो दिल में रहते हैं ,पास क्या वो दूर क्या
चाँद के रु-ब-रु कोई ,लगता है हूर क्या।
कितनी बार की हैं बातें, मैंने भी चाँद से
छलका है मेरे चेहरे भी ,कभी नूर क्या।
इस मुहाने पर हैं ,कभी उस मुहाने पर
छाया रहता है दिल पर जाने सरूर क्या।
बस एक हवा के झोंके से हम हिल गये
जाने क्या रज़ा है उसकी,उसे मंज़ूर क्या।
काले हो जाते हैं, चाँद, सूरज ग्रहण में
मिट जाता है उनके चेहरे से, नूर क्या।
ख्यालों में जब किसी के आते हैं बार बार
हो जाते हैं जमाने में, यूं ही मशहूर क्या।
बेवज़ह की उदासी को दिल से न लगाना
है बहार को खिजां में रहना, मंज़ूर क्या।
Thursday, June 21, 2012
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