Friday, June 22, 2012

जाने को थे कि, तभी बरसात हो गई
खुलके दिल की दिल से फिर बात हो गई।
चाँद भी झांकता रहा, बादलों की ओट से
कितनी ख़ुशनुमा,वही फिर रात हो गई।
तश्नगी पहुँच गई लबों की जाम तक
बेख़ुदी ही रूह की भी सौगात हो गई।
जुल्फें तराशता रहा फिर मैं भी शौक़ से
कुछ तो, नई सी यह करामात हो गई।
दिल ने तमन्ना की थी जिसकी बरसों से
बड़ी ही हसीन वो एक मुलाक़ात हो गई।

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