सिंगार करके ज्यादा मासूम लगने लगे
शर्म ह्या के गहने उन पे सजने लगे।
देख कर के ताव, हुस्ने-महताब का
तुनक मिजाज़ शीशे भी चटकने लगे।
भीड़ में खो गये थे जो ,वो एहसास
फिर से उनके जादू से मचलने लगे।
ता-उम्र जिस प्यार को तरस रहे थे
इतराकर उस प्यार में उछलने लगे।
सिफ़त जाने क्या थी उन आँखों में
नशा इस क़दर चढ़ा, बहकने लगे।
Saturday, March 24, 2012
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