ख़ुशी को किसी की नज़र लग गई
या ग़म को मेरी ही उम्र लग गई !
दिन दो चार मांगे थे जीने के लिए
मौत को पहले ही ख़बर लग गई !
बेहद उदास थे, रात में हम लोग
चश्म तर थी, फिर भी मगर लग गई !
यह पूछो वक्त से, शायद वो बताए
आग जो लगनी थी किधर लग गई !
दर्द छुपाकर रखा था, दिल में तेरा
इसकी भी दुनिया को ख़बर लग गई !
एकदम से चूम लिए होंठ, मैंने तेरे
मुझे भी शायद हवाए शहर लग गई !
या ग़म को मेरी ही उम्र लग गई !
दिन दो चार मांगे थे जीने के लिए
मौत को पहले ही ख़बर लग गई !
बेहद उदास थे, रात में हम लोग
चश्म तर थी, फिर भी मगर लग गई !
यह पूछो वक्त से, शायद वो बताए
आग जो लगनी थी किधर लग गई !
दर्द छुपाकर रखा था, दिल में तेरा
इसकी भी दुनिया को ख़बर लग गई !
एकदम से चूम लिए होंठ, मैंने तेरे
मुझे भी शायद हवाए शहर लग गई !
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