Tuesday, November 27, 2012

दास्ताने - दर्द हम किसको सुनाते
पत्थरों के शहर में किसको बसाते !

आबे - हयात नहीं है पास में मेरे
दो घूँट पानी की किसको पिलाते !

शहर चले गये थे कमाने के वास्ते
लौट आये, शक्ल किसको दिखाते !

हवा बेवफ़ाई की ही बह रही थी
क़सम वफ़ा की किसको दिलाते !

अपने ख़त में तुमने लिखा था मुझे
महावर रचे पावों को चूम तो जाते !

क्या करें ख़ुद से ही परेशान थे हम
अपनी बेबसी क्या तुमको बताते !

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