दर्द दो चार थे कभी, अब हज़ार हो गये
जाने कितने नश्तर दिल के पार हो गये।
करवटें बदल कर ही गुज़री तमाम रात
सारे कौल-ओ-क़रार ही बेकार हो गये।
तस्सवुर में मेहरबान बन कर रह रहे थे
मिलते ही मुझ से ,मेरे दावेदार हो गये।
हम भरोसा कौन से चेहरे का अब करें
अब एक चेहरे के कईं क़िरदार हो गये।
दिल के क़रीब रहे थे जो सालों -साल
वही अब ना-क़ाबिले ऐतबार हो गये।
अपनी ख़ामियों से सामना जब हुआ
नज़रें चुराकर धीरे से फ़रार हो गये।
हम मिलने की चाहत दिल में लिए रहे
ख्वाब हमारे सारे ही तार-तार हो गये।
हस्ती किसी गरीब की जो लुटने को हुई
अमीर भी सारे के सारे तैयार हो गये।
Monday, May 28, 2012
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