जलती हुई शमां के परवाने बहुत हैं
हर हसीन रात के अफ़साने बहुत हैं।
तन्हां अपने चाँद को न छोड़ना कहीं
शबे चांदनी में चाँद के दिवाने बहुत हैं।
यारों हमें दिल से पत्थर न समझना
हमको अपने गम अभी छुपाने बहुत हैं।
अलग क़ाफिले से मैं चल नहीं सकता
अभी तो मेरे साथ में ज़माने बहुत हैं।
प्यास उजाले की बढ़ रही है हर घड़ी
मुझे चिराग़ अभी तो जलाने बहुत हैं।
हम ज़ाम पी लेंगे,जब भी प्यास लगेगी
मेरे लिए उन आँखों के पैमाने बहुत हैं।
गेसू उनके बिखरे तो किस्मत संवर गई
ख्वाब उनके संग हमे सजाने बहुत हैं।
अपना मसीहा उनको बना तो लिया
मगर वे अपने आप में सयाने बहुत हैं।
एक ज़गह दिल लगे भी तो लगे कैसे
रहने को अब दिल के ठिकाने बहुत हैं।
Sunday, February 19, 2012
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