ज़िन्दगी बहुत कुछ सिखा देती है
ग़लत, ठीक में फर्क़ बता देती है।
बदी पर उतर आती है मगर जब
मज़ाक भी बहुत बड़ा बना देती है।
जब देती है, दिल खोलकर देती है
मुफ़लिसी का वरना तांता लगा देती है।
पहाड़ों पर जाने का जब मन होता है
सहरा का वह रास्ता दिखा देती है।
सवाल तो चंद घड़ियों का होता है
मगर ता-उम्र का रोग लगा देती है।
सुकून से जब भी दम लेने को होते हैं
बे-इल्म सफ़र नाकाम बना देती है।
उस रंग से सिंगार नहीं करती कभी
जिस रंग के कपडे पहना जाती है।
Friday, June 15, 2012
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