अदाकार तो बहुत हैं, फ़नकार नहीं है
अब किसी के सर पर दस्तार नहीं है।
साकी तेरे मैक़दे में मय बहुत है मगर
खुशबू बिखेर दे ,वो कद्रे-यार नहीं है।
हमदर्द बहुत मिलते हैं हर मोड़ पे खड़े
दिल में किसी के भी मगर प्यार नहीं है।
प्यार में, कसमें हों, वादे हों या हो वफ़ा
कुछ भी तो यहाँ सिलसिलेवार नहीं है।
हर कोई अपनी ख़ुदी में मस्त है बहुत
किसी को किसी की भी दरकार नहीं है।
Saturday, February 4, 2012
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