Wednesday, May 9, 2012

मेरे घर का अगर तुम एक फ़ेरा ही ड़ाल देते
पलकों से तुम्हारे पाँव के हम ख़ार निकाल देते।
किसी मक़सद से फ़ासला ए दिल जो मिटा देते
दरमियाँ नए रिश्तों की हम बुनियाद ड़ाल देते।
बर्फ सा ज़म गया है खून ज़िस्म का हमारे
अफशां-ए- ताब से तुम्हारे हम उसे उबाल देते।
दिल के बहाव में अगर तुम डूबने को होते
क़सम ख़ुदा की हाथ थाम कर सम्भाल देते।
हमारी बंदगी दुनिया ए मिसाल बन जाती
हसरत दोनों दिलों की ही हम निकाल देते।








1 comment:

  1. बहुत उम्दा ग़ज़ल दिल तक पहुँच गई ...वाह दाद कबूल करें

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