झुर्रियों पर सिंगार अच्छा नहीं लगता
हर वक़्त त्यौहार अच्छा नहीं लगता।
रूठना तो बड़ा अच्छा लगता है उनका
गुस्सा बार बार का अच्छा नहीं लगता।
तुम जरूरत हो हमारी यह माना हमने
पर लबों पे इसरार अच्छा नहीं लगता।
खनक चूड़ियों की बड़ी अच्छी लगती है
उस वक्त सितार अच्छा नहीं लगता।
तस्वीर पर तुम्हारी होंठ रख दिएमैंने
बेमतलब इंतज़ार अच्छा नहीं लगता।
मैख़ाने में तेरे साक़ी आ ही गये हैं हम
अब करना इन्कार अच्छा नहीं लगता।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
प्रेम के भावों से सजी प्रेमम्यी खूबसूरत प्रस्तुति....
ReplyDeleteआनंद आ गया सर...
ReplyDeleteखूबसूरत गजल...
सादर।
बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDelete