मुहब्बत में सवाल-ओ-जव़ाब नहीं होते
कागज़ों पर सजे कभी ख़्वाब नहीं होते।
तुम्हे देखता रहता मैं, फुरसत से, चैन से
ज़िन्दगी में अगर इतने अज़ाब नहीं होते।
लम्ह-ए-विसाल की कीमत क्या लगायें
इलाका-ए-मुहब्बत में मोलभाव नहीं होते।
हमको अँधेरी रातों में रहने की आदत है
हर रात तो दीदार-ए-महताब नहीं होते।
वफ़ा,ह्या,दुआ महकते झोंके हैं प्यार के
गले लगने को सब मगर बेताब नहीं होते।
बजते रहते हैं साज़, बंद कमरे में अकसर
दर्द के ही बेवज़ह हमसे हिसाब नहीं होते।
Tuesday, June 12, 2012
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