जाने दिल को किसकी नज़र लग गई
दर्द को मेरे किसी की उम्र लग गई।
धूप शाम तलक मेरे आँगन में थी
सब को ही इस की खबर लग गई।
मैं तो चल रहा था संभल कर बहुत
मुझ को ही ठोकर मगर लग गई।
वारदात तो कोई बड़ी ही हो जाती
अच्छा हुआ जल्दी सहर लग गई।
मां से कहूँगा , मेरी नज़र उतार दे
मुझ को भी हवाए-शहर लग गई।
Friday, April 13, 2012
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