कुछ तो है जिसकी परदे दारी है
दिल में सबके बड़ी ही बेकरारी है।
जताना नहीं उसे छिपाना आता है
उसके पास सियासत की पिटारी है।
हर वक्त नए पैंतरे अपनाता है वो
हर लम्हा आदमी में नई होशियारी है।
खून के रिश्ते सब पैसों में बिक गये
फटे हुए रिश्तों पर अब पैवंदकारी है।
क़दम क़दम पर मसले ही मसले हैं
ज़िंदगी की मुसलसल जंग जारी है।
दिल के अन्दर तक देख नहीं सकता
आईने की भी अपनी ही लाचारी है
अखब़ार ही आज सब से सस्ता है
क़ब्ज़े में उसके मगर दुनिया सारी है।
Saturday, March 17, 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment