Wednesday, March 21, 2012

तलवार घिसते घिसते छुरी रह गई
बात जो कहनी थी अधूरी रह गई।
तुम सा कोई भी नहीं था शहर में
अब तो यहाँ बस मजबूरी रह गई।
मैंने चिराग़ जलाये सबके वास्ते
खुद की राह मेरी अँधेरी रह गई।
तन्हा दिल भला करता क्या क्या
हंसने की चाह भी अधूरी रह गई।
पहनते ही फट गया पैरहन नया
चमकती हुई पुरानी ज़री रह गई।
तुम्हारे संग चीज़ें अच्छी लगती थी
मन में वही परतें सुनहरी रह गई।


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