Thursday, March 1, 2012

उम्मीद की लौ तो जल रही है
ख्वाहिश दिल में नई पल रही है।
ख़ूबसूरत ग़ज़ल सुनने के लिए
शमां धीरे धीरे पिघल रही है।
मस्त निगाहों से न देखो हमें
वहशत सी दिल में पल रही है।
सुन लो, कि शाम भी ढल गई
तबियत पीने को मचल रही है।
किसने बिखरा दिए हैं जुगनू
सिंगार शब् अपना बदल रही है।
छोड़ के अदावत यारी पकड़ ले
मुहब्बत भी करवट बदल रही है।


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