आईने ने तो बहुत ख़ूबसूरत लगने की गवाही दी थी
कोई मुझे देखा करे, मैंने किसी को यह हक न दिया।
वक्त को भी दर्दे-तन्हाई का कभी एहसास नहीं हुआ
मेरे गरूर ने मुझे ,किसी आँख में रहने तक न दिया।
रह रह कर कईं सिलसिले याद आ रहे हैं आज
काश ! भूले से ही किसी महफ़िल में रह लिए होते
आज वक्त ही वक्त है ,काटे से भी नहीं कटता
मुहलत मिली होती तो, अपनों के गले लग गये होते।
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badhiya..badhai.
ReplyDeleteबढ़ चलो ए जिंदगी sath hi ye bhi dekhen-धारा ४९८-क भा. द. विधान 'एक विश्लेषण '
shandar prastuti.
dil se chaha hai to mulakat hogi..gale bhee milenge aaur baat bhee hogi..ho sakta hai kee tasweer na ho abhi koi aankho mein..yakin mniye kabhi naa kabhi aankho se barsaat bhee hogi
ReplyDeleteबहुत खूब, क्या बात है......
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