रिश्तों की जो हम कहीं बुनियाद डाल देते
हसरतें दिल की अपनी सारी निकाल देते।
महक उठती मिटटी आँगन की हमारे भी
प्यार की ख़ुशबू का अगर बीज डाल देते।
वक्त थोड़ी सी भी अगर मोहलत दे देता
निख़ार हम भी अपने ख़्वाबो-ख़्याल देते।
एक भी लफ्ज़ प्यार का जो हम बोल देते
सब हमारे उस लहज़े की ही मिसाल देते।
एहसास के आईने पर कभी गर्द न जमती
बिन पिए ज़ाम अपना जो हम उछाल देते।
तन्हाइयां जब भी हमे तड़पाने को होती
अपनों की हम भी फेरहिस्त निकाल देते।
चाँद भी हमारी चाहतों का कायल हो जाता
चांदनी के गले अगर अपनी बाँहे डाल देते।
Wednesday, May 23, 2012
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