हम एक पल में सदियाँ लुटा देते हैं
वक्त को हर ज़ानिब महका लेते हैं।
जाने फिर मोहलत मिले या न मिले
हर लम्हा मुहब्बत से सजा लेते हैं।
घाव पुराने फिर से हरे न हो जाएँ
रोज़ ख़ुद ही मरहम लगा लेते हैं।
हज़ारों लुभावने चेहरे मिलते हैं
हम तस्वीर से दिल बहला लेते हैं।
हर एक का दर्द अपने सीने पर हम
बिला तकल्लुफ़ के आज़मा लेते हैं।
खुदाई लुटाने को जब ख़ुदा कहता है
उसकी अदालत में सर झुका लेते हैं।
Thursday, June 7, 2012
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