वक्त ही था जो मुझे बाख़बर कर गया
तश्नगी से मगर तर ब तर कर गया।
ज़िस्म का शहर तो वही रहा मगर
दिल को मेरे रख्ते-सफ़र कर गया।
मैंने जिस के लिए घरबार छोड़ा था
अपने घर से मुझे वो बेघर कर गया।
फ़िराक में गुज़र रही थी ज़िन्दगी मेरी
मेरे हाल की सबको खबर कर गया।
गमों से मेरे ताल्लुकात बना कर
हर शब को मेरी बे-सहर कर गया।
माना तस्सवुर तेरा मेहरबान रहा
पर दुआ को मेरी बे-असर कर गया।
Thursday, May 3, 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment