रात भर तेरी याद आती रही
बेवज़ह क़रार दिलाती रही।
जैसे सुनहरी धूप सर्दी की
ठिठुरती देह सहलाती रही।
जैसे सहरा में चले बादे सबा
रूह को भी थपथपाती रही।
दमकता रहा चाँद आसमां पे
चांदनी दर खटखटाती रही।
ऊंघता बिस्तर सो नहीं सका
तेरी ख़ुश्बू नखरे दिखाती रही।
कितना मैं अधूरा रह गया था
इसकी भी याद दिलाती रही।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
ReplyDeletedhanywaad Rajesh Kumari ji
ReplyDelete