जिस को भी मैंने है हवा से बचाया
उस चिराग़ ने ही घर मेरा जलाया।
हमसफ़र बनकर साथ चला जो भी
तन्हाई का उसने ही फ़ायदा उठाया।
सूखे लब हैं ,यह भीगी भीगी आँखें
बहार ने भी कैसा यह गुल खिलाया।
क़द से बाहर तो निकल आया था मै
ख़ुद से ही बाहर न मैं निकल पाया।
ख़ुदा को खोजने निकला था, मैं तो
मुझ को ढूँढता फिरा मेरा ही साया।
सूने दालान यह खिड़कियां वीरान
घर का मेरे, यह क्या हाल बनाया।
हज़ार खिड़कियां थी, दिल में मेरे
किसी को भी मैं, नहीं खोल पाया।
तीर की माफ़िक़, चुभी अंगुली वो
किसी ने जब मेरा ज़ख्म सहलाया।
मेरे ज़ख्मों की महक़ कहती है यह
तू भी तो मुझ को , नहीं भूल पाया।
उस चिराग़ ने ही घर मेरा जलाया।
हमसफ़र बनकर साथ चला जो भी
तन्हाई का उसने ही फ़ायदा उठाया।
सूखे लब हैं ,यह भीगी भीगी आँखें
बहार ने भी कैसा यह गुल खिलाया।
क़द से बाहर तो निकल आया था मै
ख़ुद से ही बाहर न मैं निकल पाया।
ख़ुदा को खोजने निकला था, मैं तो
मुझ को ढूँढता फिरा मेरा ही साया।
सूने दालान यह खिड़कियां वीरान
घर का मेरे, यह क्या हाल बनाया।
हज़ार खिड़कियां थी, दिल में मेरे
किसी को भी मैं, नहीं खोल पाया।
तीर की माफ़िक़, चुभी अंगुली वो
किसी ने जब मेरा ज़ख्म सहलाया।
मेरे ज़ख्मों की महक़ कहती है यह
तू भी तो मुझ को , नहीं भूल पाया।
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