बहुत दिनों से धूप नहीं निकली ---
भर सर्दी में वो रात भर काँपता रहा
एक चादर में ही गर्मी तलाशता रहा !
सुबह फिर कुहरे में छिप गई धूप
सूरज को सारा दिन पुकारता रहा !
शाम, धुंध के आगोश में आ गिरी
रात भर अँधेरा फिर चीखता रहा !
बहुत दिनों से धूप निकली नहीं
आकाश सल्तनत यूं बांटता रहा !
नाव डूब गई जैसे किनारे पे आकर
हाशिये पर खड़ा बस ताकता रहा !
कभी तो सूरज उसके घर आएगा
उम्मीद पर जिंदगी गुज़ारता रहा !
भर सर्दी में वो रात भर काँपता रहा
एक चादर में ही गर्मी तलाशता रहा !
सुबह फिर कुहरे में छिप गई धूप
सूरज को सारा दिन पुकारता रहा !
शाम, धुंध के आगोश में आ गिरी
रात भर अँधेरा फिर चीखता रहा !
बहुत दिनों से धूप निकली नहीं
आकाश सल्तनत यूं बांटता रहा !
नाव डूब गई जैसे किनारे पे आकर
हाशिये पर खड़ा बस ताकता रहा !
कभी तो सूरज उसके घर आएगा
उम्मीद पर जिंदगी गुज़ारता रहा !
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