क्या कहूं, तेरे बिना मैं क्या हो गया
जगमगाते शहर में अँधेरा हो गया।
ज्यों फूल से गायब हो जाए खुश्बू
बेचारगी का मैं सिलसिला हो गया।
आँगन में उतरने को थी धूप जैसे ही
सूरज पर बादलों का पहरा हो गया।
किया करते थे हम बारिश की दुआएं
सैलाब आँखों में हद दरज़ा हो गया।
भटक रहा हूँ अब अपनी ही तलाश में
अक़्स मेरा, दर्द का नगमा हो गया।
मेरे पास फ़क़त किरचियाँ ही रह गईं
शीशा ए दिल टूट कर , चूरा हो गया।
कभी तो एक बार आकर देखले मुझे
मैं धुंआ देती लकड़ी का टुकड़ा हो गया।
जगमगाते शहर में अँधेरा हो गया।
ज्यों फूल से गायब हो जाए खुश्बू
बेचारगी का मैं सिलसिला हो गया।
आँगन में उतरने को थी धूप जैसे ही
सूरज पर बादलों का पहरा हो गया।
किया करते थे हम बारिश की दुआएं
सैलाब आँखों में हद दरज़ा हो गया।
भटक रहा हूँ अब अपनी ही तलाश में
अक़्स मेरा, दर्द का नगमा हो गया।
मेरे पास फ़क़त किरचियाँ ही रह गईं
शीशा ए दिल टूट कर , चूरा हो गया।
कभी तो एक बार आकर देखले मुझे
मैं धुंआ देती लकड़ी का टुकड़ा हो गया।
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