Sunday, February 17, 2013

सीखने की उम्र में, सिखाना आ गया
सबने कहा कैसा ये दिवाना आ गया !
शमां तो जल न पाई थी अब तलक़
इतनी जल्दी कैसे परवाना आ गया !
जिसने भी तुझे देखा, तारीफ़ तेरी की
हर नज़र में कोई बुतख़ाना आ गया !
ज़िक्र होता है, जब भी, उन लम्हों का
लगता है हाथ में कोई ख़ज़ाना आ गया !
यादों के सिवा तेरी , कुछ भी नहीं बचा
हमें भी घर अपना यूं सजाना आ गया !
उम्र की कभी कोई मन्ज़िल नहीं होती
समझ में अब यह अफसाना आ गया !
बुरा नहीं लगता, अब हंसना किसी का
मिज़ाज दोस्ताना वो पुराना आ गया !
इनायतें बरसने लगी, आसमान से यूं
लगा सियासत का अब ज़माना आ गया !

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