अपनों की किस से शिकायत करूं
बच्चों सी क्या अब शरारत करूं !
मन्दिर मिली तुम तो सोचता रहा
देखता रहूँ तुम्हे या इबादत करूं !
बला की खुबसूरत हो तुम इतनी
इन आँखों पे कितनी इनायत करूं !
आँखे इतरा रही हैं देख कर तुम्हे
न देखने की कैसे मैं हिमाक़त करूं !
खुशबु की उजालों की धनक हो तुम
किस क़दर तुम्हारी हिमायत करूं !
खो न दे मासूमियत अपनी ये कहीं
इस दिल की कितनी हिफाज़त करूं !
बच्चों सी क्या अब शरारत करूं !
मन्दिर मिली तुम तो सोचता रहा
देखता रहूँ तुम्हे या इबादत करूं !
बला की खुबसूरत हो तुम इतनी
इन आँखों पे कितनी इनायत करूं !
आँखे इतरा रही हैं देख कर तुम्हे
न देखने की कैसे मैं हिमाक़त करूं !
खुशबु की उजालों की धनक हो तुम
किस क़दर तुम्हारी हिमायत करूं !
खो न दे मासूमियत अपनी ये कहीं
इस दिल की कितनी हिफाज़त करूं !
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