Saturday, August 24, 2013

हुस्न तो ढल गया ग़ुरूर अभी बाकी है
नशा भी उतर गया सरूर अभी बाकी है !
हवाओं ने छेड़खानी की और चली गई
फ़िज़ा में बिखरी गर्देसफ़र अभी बाकी है !
ढूंढते ढूंढते इश्क की नदी तक पहुँच गये
उसमे उतरने का ही हुनर अभी बाकी है !
तेरे बीमार को करार मिल सका न कहीं
उसका भटकना इधर उधर अभी बाकी है !
जो भो मिला बिछड़ने का सबब पूछता है
चेहरे पर जख्मों का नूर अभी बाकी है !
आँख से बहते आंसू थम न सके अब तक
सुनहरा है जख्म शबे हिज्र अभी बाकी है !
दिल को हमारे ही इश्क करना न आया
दिल में एक गम यह जरूर अभी बाकी है !

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