Tuesday, June 11, 2013

फूल  टूट कर  भी  महका था
दर्द  खुशबुओं में  लिपटा  था  !
गहरा  नाता  है  सुख दुःख में
अश्क़ ख़ुशी में भी निकला था !
तितली फूल से लिपटी हुई थी
भँवरे का ताल्लुक़ भी गहरा था !
चांदनी धरती पर फैली हुई थी
चाँद आसमान पर अकेला था  !
बहुत  चीखता था  जो  तूफ़ान
दर दर भी वह ही तो भटका था !
समन्दर  से उठा था एक बादल
और सहरा में भी वह टपका था  !
कुछ तो  मेरी  ही  दीवानगी थी
कुछ  आइना  भी  बोलता  था  !
हर कोई अपना सा  था  लेकिन
यहाँ  कोई भी  नही अपना  था  !
सुख दुःख में साथ दिया जिसने
कोई और न था मेरा आइना था   !

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