नज़र में रह कर भी नज़र में नहीं
गुज़र अब मेरी उसके घर में नहीं।
मैंने तो सिलसिला रखा था उससे
उस की चाहत, मेरे असर में नहीं।
दुश्मनों से पहचान मिली है मुझे
अपनों के तो, मैं बराबर में नहीं।
पत्थरों से डर नहीं लगता मुझको
अब आइना कोई मेरे घर में नहीं।
बहुत खुश था मैं तो सोच कर यह
मुझ से अच्छा सारे शहर में नहीं।
मगर मुझ में कुछ टूटने लगा अब
अब वो दम इस मुसाफिर में नहीं।
गुज़र अब मेरी उसके घर में नहीं।
मैंने तो सिलसिला रखा था उससे
उस की चाहत, मेरे असर में नहीं।
दुश्मनों से पहचान मिली है मुझे
अपनों के तो, मैं बराबर में नहीं।
पत्थरों से डर नहीं लगता मुझको
अब आइना कोई मेरे घर में नहीं।
बहुत खुश था मैं तो सोच कर यह
मुझ से अच्छा सारे शहर में नहीं।
मगर मुझ में कुछ टूटने लगा अब
अब वो दम इस मुसाफिर में नहीं।
दुश्मनों से पहचान मिली है मुझे
ReplyDeleteअपनों के तो, मैं बराबर में नहीं।
पत्थरों से डर नहीं लगता मुझको
अब आइना कोई मेरे घर में नहीं।
बहुत बढिया ।