Friday, May 24, 2013

सपनों में मेरे रंग नए भरती चली गई
खुशबु तेरी बदन से लिपटती चली गई !
नर्मी फूलों की थी या मस्ती शराब की
रूह में ऐसी घुली की घुलती चली गई !
महक रही थी ग़ज़ल की तरह से तुम
बज़्म तुम्हारे हुस्न से सजती चली गई !
हिस्से में मेरे जब से घडी आई थी वह
रुत दिल में प्यार की मचलती चली गई !
वह अदा थी, दुआ थी, हवा थी क्या थी
किस्मत मेरी तब से चमकती चली गई !
मैं चाँद को छू लेने की तमन्ना लिए रहा
चांदनी आँगन में मेरे आकर बिखर गई !

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