Tuesday, September 3, 2013

कुछ दाग़ ज़िन्दगी भर नहीं जाते
उम्र गुज़र जाती है छिपाते छिपाते।
इश्क़ का सौदा कर लिया था कभी
कटी रातें सब कर्ज़ चुकाते चुकाते।
चरागों की बस्ती में बहुत ही  ढूँढा
सितारे छिप गये   दिखते दिखाते।
भटकती हैं परछाइयां अब आवारा 
बे सदा हो गईं गम सुनाते सुनाते।
जवानी  कब आई, चली गई  कब
थक गया आइना भी बताते बताते।
न जाने बादल यह घने कब छटेंगे
उम्मीद  टूटी आस लगाते लगाते।
परदेस से लौटकर आ तो गये तुम
ख़बर मिल गई हमें भी उड़ते उड़ाते।
 

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