Sunday, June 23, 2013

पैसे की भेंट चढ़ गई सारी अच्छाइयां
हिस्से में रह गई खामियां परेशानियाँ !
हैरान है आम आदमी यह देखकर बहुत
जश्न मन रही हैं मिलकर सब बुराइयां !
भ्रष्टाचार लूट खसोट बलात्कार की ही
सुनने को मिलती हैं अब तो कहानियां !
नई सहर के खुदाओं का हाल मत पूछो
बाँट रहे हैं सब को दर्द की निशानियाँ !
इनके सहारे कुछ दिन जो और जी लिए
खा जाएँगी हमको हमारी ही लाचारियाँ !
सिलसिला खत्म न हुआ चलता ही रहा
सबब पूछेंगी इस बेबसी का कुर्बानियां  !

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