Thursday, June 27, 2013

मंज़िल तक न पहुँच सकी मेरी कहानी
कहानी तो मेरी भी है वही बरसों पुरानी !
दिन यही थे चमक यही फ़िज़ा भी यही
यही रंग थे दिल में मेरे भी, आसमानी !
सियाह शब् में फ़लक़ पे तारों की सजावट
ऐसी ही होती थी तब भी तो रातें सुहानी !
इतना ज़रूर है मुझको नए गम मिले थे
सब को नहीं देती जवानी  ऐसी निशानी !
मेरा नाम मुझे दिया और दिया यह जहां
इससे ज़ियादा और क्या देती ये ज़िंदगी !

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