Tuesday, November 5, 2013

जलते सवालों के सुलगते ज़वाब कौन देगा
जो रात बीत गयी उस के ख्बाब कौन देगा।
इक आग होनी चाहिए, रौशनी के लिए भी
इस अँधेरे में उजालों का हिसाब कौन देगा।
इतनी ज़यादा मिल गई हमें गमों की दौलत
ज़र्द हवाओं को खुशबु-ए -गुलाब कौन देगा।
उदासियाँ सी बिखरी पड़ी हैं ,चारों ही तरफ
इस मौसम को बहार का ख़िताब कौन देगा।
हमारी तमन्ना को जगाया और बुझा दिया
हमारे ज़ुनून को अब हवा बेताब कौन देगा।
आज़ की शब् चाँद की चमक बहुत फीकी है
आज़ चांदनी को हुस्ने-माहताब कौन देगा।
हवा का एक झोंका आया, सब बिखर गया
अब मुहब्बत में भरोसे का हिसाब कौन देगा।

 

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