Monday, June 10, 2013

तेरे जाने के बाद ही  शाम हो गई
शब् पूरी  अंधेरों के  नाम हो गई  !
मैक़दे की तरफ  बढ़ चले  क़दम
ज़िंदगी ही फिर जैसे ज़ाम हो गई !
आँखों से आंसु  बन  बह गया दर्द
उम्मीद मेरी मुझ पे इल्ज़ाम हो गई !
वक्त का फिर कभी पता नहीं चला
रफ़्ता रफ़्ता उम्र ही तमाम हो गई !
जिंदगी  में  ख़ुशी  जितनी  भी  थी
वक्त के हाथों सब  नीलाम हो गई  !
चल कहकहों में दफ़्न  कर दें अब
वह खामुशी  जो सरे आम हो गई !

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