Thursday, September 26, 2013

तेरे ग़म का आख़िर हम क्या करें
कब  तलक़ तेरा हम सज़दा  करें !
क्या करें  इससे ज़्यादा यह  बता
फ़ासला न रक्खें तो फिर क्या करें !
दिल का दर्द हमने भरा तस्वीर  में
लकीरों को कितना हम गहरा  करें !
वह तस्वीर  आईने में देखी थी जो
क्यों बार बार उस को ही देखा करें !
मिला है मुझ को ही हमसफ़र ऐसा
दुआओं का भी आख़िर हम क्या करें !
तेरी बातों से  मुझे डर लगने लगा है
तेरा कहा भी कैसे हम अनसुना करें !
बात कहने पर भी लगी हुई है पाबंदी
अब  किस क़दर  तेरा हम चर्चा करें !
शख्श किसी भी काम न आ सके जो
तू ही बता ,उस शख्श का  क्या करें !

No comments:

Post a Comment