हमने ज़न्नत का इक शहर देखा है
हमने उनके, मन का नगर देखा है।
चाँद शरमा के छुप गया, बदली में
उन के हुस्न का यह असर देखा है।
ओस में नहाया हुआ उनका हमने
फूल सा यौवन -शिखर देखा है।
सर्द रुख़सार से गर्म होठों तलक़
सियाह ज़ुल्फ़ों का क़हर देखा है।
नज़रे-साहिल से नज़रें चुरा हमने
दरियाए हुस्न में तैर कर देखा है।
देखा है वह सर-आ-पा हुस्न हमने
रेशमी रूप का वह समंदर देखा है।
वक़्त का क़ाफ़िला भी, रुक गया
उन्होंने जब हंस के, इधर देखा है।
हमें अपना बना लिया, जब चाहा
उन्हें मेहरबान इस क़दर देखा है।
नशा नहीं उतरा, कभी भी हमारा
हमने उम्र का वो भी सफ़र देखा है।
हमने उनके, मन का नगर देखा है।
चाँद शरमा के छुप गया, बदली में
उन के हुस्न का यह असर देखा है।
ओस में नहाया हुआ उनका हमने
फूल सा यौवन -शिखर देखा है।
सर्द रुख़सार से गर्म होठों तलक़
सियाह ज़ुल्फ़ों का क़हर देखा है।
नज़रे-साहिल से नज़रें चुरा हमने
दरियाए हुस्न में तैर कर देखा है।
देखा है वह सर-आ-पा हुस्न हमने
रेशमी रूप का वह समंदर देखा है।
वक़्त का क़ाफ़िला भी, रुक गया
उन्होंने जब हंस के, इधर देखा है।
हमें अपना बना लिया, जब चाहा
उन्हें मेहरबान इस क़दर देखा है।
नशा नहीं उतरा, कभी भी हमारा
हमने उम्र का वो भी सफ़र देखा है।
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