Thursday, August 1, 2013

शुहरत छु लेती है जब भी ऊंचाइयां
आगे आगे चलती हैं तब परछाइयां !
मुझको काम में लगा हुआ  देखकर
मसरूफ़ होजाती हैं  मेरी तन्हाईयाँ !
खुशियों के रंग मुझ में जब भरते हैं
सिमट जाती हैं कहीं पे धुन्धलाइयां !
दिल की वादियों में शोर  मचता है
तो सुर्खियाँ बन जाती हैं  रानाइयां !
कुछ लोग मेरे उजालों से भी डरते हैं
परेशान करती हैं उनको अच्छाइयां !
ख़ुदकुशी कर लेते हैं  लोग बहुत से
और नापते ही रह जाते हैं गहराइयां !

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