हर वक्त तो हाथ में गुलाब नहीं होता
उधार के सपनों से हिसाब नहीं होता।
यूं तो सवाल बहुत से उठते हैं ज़हन में
हर सवाल का मगर ज़वाब नहीं होता।
शुहरत मेरे लिए अब बेमानी हो गई
ख़ुश पाकर अब मैं ख़िताब नहीं होता।
रात भर तो सदाओं से घिरा रहता हूँ मैं
सुबह उठते आँखों में ख्वाब नहीं होता।
छेड़छाड़ करता रहता हूँ चांदनी से मैं
ख़फ़ा मुझ से कभी महताब नहीं होता।
मयकदा खुल गया घर के बगल में मेरे
हर वक्त मगर जश्ने शराब नहीं होता।
उधार के सपनों से हिसाब नहीं होता।
यूं तो सवाल बहुत से उठते हैं ज़हन में
हर सवाल का मगर ज़वाब नहीं होता।
शुहरत मेरे लिए अब बेमानी हो गई
ख़ुश पाकर अब मैं ख़िताब नहीं होता।
रात भर तो सदाओं से घिरा रहता हूँ मैं
सुबह उठते आँखों में ख्वाब नहीं होता।
छेड़छाड़ करता रहता हूँ चांदनी से मैं
ख़फ़ा मुझ से कभी महताब नहीं होता।
मयकदा खुल गया घर के बगल में मेरे
हर वक्त मगर जश्ने शराब नहीं होता।
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