Saturday, February 2, 2013

पिछले जन्मों की क़िताब किसने देखी
थी वो कितनी लाजवाब किसने देखी !
याद कोई नामो निशान शेष नहीं है
वो नाव होती गर्क़ाब किसने देखी !
आंखे वो लब , चेहरा और वो रंगत
किसमे थी कितनी आब किसने देखी !
जिन्हें छोड़ कर चला आया था कभी
वो बस्तियां भी बेताब किसने देखी !
उम्र तमाम सजने संवरने में लगे रहे
वो मिट्टी अपनी बेआब किसने देखी !
जहां भी गये नसीब अपना साथ ले गये
सहरा में फसलें शादाब किसने देखी !
फ़रिश्ते ही चखा करते थे बस जिसको
कैसी थी वो आबे -शराब किसने देखी !
बस दो चार घडी का ही खेल है जिंदगी
यह जिंदगी फिर ज़नाब किसने देखी !
आबे - शराब ------सोमरस

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