Sunday, November 17, 2013

उम्र प्यार की अब कम हो गई 
यह सोचकर आँख नम हो गई।
चाँद  गोद में कभी आया  नहीं
ज़िन्दगी अँधेरे में गुम हो गई।
रिश्तों को भुनाते भुनाते ही तो
दिलों की चमक ख़त्म हो गई।
लगावट दिलों में अब रही नहीं
हँसी भी होठों पर हिम हो गई।
उम्र भर धूप में रहते रहते अब
छाँव में ये आंखें बेदम हो गई।
सहरा में भटक लिए इतना हम 
तिश्नगी  होठों की कम हो गई।
मेरी साख़ पर अंगुली क्या उठी
ज़िन्दगी ही अब सितम हो गई। 
 

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