Friday, December 19, 2014

दिल को उनसे कोई भी शिक़ायत न रही
बस उनके बिना रहने की आदत न रही।
चांदी की बरसात हुई थी उन के शहर में
मगर  ग़लत मेरी  कभी नीयत  न रही।
मैं आज़ जो कुछ हूँ, उन की बदौलत हूँ
अब  यह आज़माने की ज़रूरत न  रही।
एक तन्हां सी  शमां  जली तमाम रात
चांदनी की  उस पर ही इनायत न रही। 
ज़ुबान पर रहने लगा जब से दर्दे -दिल
दर्द की अब पहली सी कैफ़ियत न रही।
तब आइना देखने का हमें बड़ा चाव था
अब सामना करने की  हिम्मत न रही।
तन्हाई अच्छी लगने लगी मुझको अब
अब दिल पर किसी की हुक़ूमत न रही। 
  

Saturday, December 6, 2014

रहज़नों से डर नहीं है मुझे
वो लूटकर  तो  छोड़ देते हैं
शिकायत  तो अपनों  से है
ज़िंदगी का रुख मोड़ देते हैं
चंद सिक्कों की  ख़ातिर ही
सुलूक़ रिश्तों से जोड़ लेते हैं
मतलब निकल गया तो फिर
सुलूक़ रिश्ते सब तोड़ देते हैं 

     

Tuesday, October 28, 2014

अगर सोच अपना मिज़ाज बदल लेती
ज़िंदगी भी अपना अंदाज़  बदल लेती।
नफ़रत अगर ज़रा भी मोहलत दे देती
मुहब्बत भी अपने परवाज़ बदल लेती।
गुलों से खुशबु अगर  बातें नहीं करती
रिवायतें भी अपने रिवाज बदल  लेती।
दिख जाता मुझको भी अगर चाँद मेरा
ख्वाहिशें मेरी तख्तो -ताज़ बदल लेती।
दिल को जो धड़कना नहीं आता अगर
धड़कनें तक़  अपना साज़  बदल लेती।
धुंधलका भी दिन भर छाया नहीं रहता
सुबह अगर अपना आग़ाज़ बदल लेती।
ज़िन्दग़ी हम को भी तो रास आ जाती 
क़यामत जो अपनी आवाज़ बदल लेती।   

Wednesday, October 15, 2014

आकाश में पगडंडियां नहीं होती
रहने को  झोपण्ड़ियां नहीं होती।
आकाश में उड़ते हुए  परिंदों की
ज़मीन पर परछाइयां नही होती।
ज़िंदगी करवटें बदलती रहती है
हर  वक़्त  उदासियां  नहीं होती।
चाँद ने तो घटना बढ़ना होता है
हक़ीक़तें  कहानीयां  नहीं होती।
चलती है या फिर वो नहीं चलती
हवा में गलतफहमियां नहीं होती।
तन्हाइयां भी साथ में नहीं रहती
दरमियां अगर दूरियां नहीं होती।
ज़िंदगी ही फिर तो दूभर हो जाती
उसमे अगर चुनौतियां नहीं होती।
कृष्णा कभी भावुक हुए नहीं होते
दूर अगर गई गोपियां नहीं होती। 
 
 

Sunday, October 12, 2014

सुना है  कुछ आंसू आज आना चाहते थे
एहसास दिल को कुछ दिलाना चाहते थे।
उदासियाँ महक रही हैं अन्दर मेरे  कुछ
अक्स मुझको उनका दिखाना चाहते थे।
एक नाम हर वक़्त ज़बां पर था जो मेरे
सीने में उसे गहरा  दफ़नाना चाहते थे।
यह हाथ बे रंगे हिना अच्छे नहीं लगते
चाँद तारे हथेली पर  सजाना चाहते थे।
मेरा मिज़ाज बिलकुल  हवाओं जैसा  है
हम रिश्तों पे जमी गर्द उड़ाना चाहते थे।
गुज़रे हुए ज़माने की  आरज़ू नहीं हूँ मैं
वक़्त को भी तो यह बतलाना चाहते थे।
उतार लेते हैं  जो अपने हाथ पर सूरज
दिया उनके हाथों ही जलाना चाहते थे।
तुम्हे ही मौक़ा न दिया ज़रा सा भी हमें
हम तो हद से ही गुज़र जाना चाहते थे।
कहाँ से ढूंढ कर लाते ज़न्नत दूसरी हम
हम  तो  वही मौसम पुराना  चाहते थे।
नींद आती तो बुला लेते आँखों में तुम्हे
ख्वाब तो तुम्हारा ही सिरहाना चाहते थे।
 

Saturday, October 4, 2014

वो मुठ्ठी में सारा आसमान लिए बैठे हैं
वो दिल में बहुत से अरमान लिए बैठे हैं।
मेरी लम्बी उम्र है बोले मुझसे मिलते ही
क़त्ल का मेरे जो वो सामान लिए बैठे हैं।
आज चेहरे पर फ़िर से चेहरा नया चढ़ा है
आज फिर  एक नई पहचान लिए बैठे हैं।
इस तरह आँखे चुराके यार मुझसे न मिल
हम भी तो तेरे भरोसे जान  लिए बैठे हैं।
हमें मंज़ूर नहीं शिकायतें  करना अक्सर
मुंह में  हम भी अपने ज़ुबान लिए बैठे हैं।
नेकियां करके हमने भी कुएं में डाल  दी
हम भी दिल में अपने इंसान लिए बैठे हैं।     

Monday, September 22, 2014

रिश्तों में अब प्यार की शिद्दत न रही
 दिल को अब क़रार की चाहत न रही।
ख़ुद में ही इतना मस्त है आदमी अब
उस को  किसी की अब आदत न रही।
उसने कहानी सुनाई मुझे हंस कर यूं
हक़ीक़त भी फिर तो हक़ीक़त  न रही।
उस को मनाते थे हम ख़ुद ही रूठ कर
अब तो फिर इसकी भी ज़रूरत न रही।
इस दिल से निकल सके कोई तमन्ना
अब तो इतनी भी क़ाबलियत न रही।
ग़मों का मौसम तो अब भी वैसा ही है
दर्द की ही लेकिन वो क़ैफ़ियत न रही।
हसरतें जल कर के  सब राख़ हो गईं
बरक़त कैसे होती साफ़ नीयत न रही।
 ज़िंदगी ,बेहिसी , दोस्ती  या  बेरुखी
मुझे इन से कभी भी शिकायत न रही।
माँ मुझ से कहती है हंसकर अक्सर ये
क्यूं मुझ में ही बच्चों सी शरारत न रही।    

Saturday, September 13, 2014



जब तक दिल न था सीने में
बड़ा मज़ा आता था जीने में।
होश संभाला जब से दिल ने
घुट के रह गया बस सीने में।
हाल दिल का फिर यह देखा
सुराख़ रिसते ज्यूं सफ़ीने में।
उम्र गुज़र गई फ़िर तो सारी
बस ज़ख्मों को ही  सीने  में।
चाँद की तरह जगमगाये हम
कभी धूप में नहाये पसीने में।
मेहनत से कभी डरे नहीं हम
ख़ुश्बू सी भी  आई पसीने में।
वक़्त से कभी  दिल से लड़ते  
हम चढ़ते चले गए ज़ीने  में।  

Sunday, September 7, 2014

अपनों से  कभी फ़ुरसत न मिली
अपनों से पर अहमियत न मिली।
दर्द  तो हल्का कर दिया वक़्त ने
ख़ुशी भी कभी सलामत न मिली।
ज़िंदगी का अंदाज़ निराला देखा
मेरे हिस्से की ही ज़रूरत न मिली।
खुश्बुएं मिली लाज़वाब हर क़दम
ख़्वाब भी मिले हक़ीक़त न मिली।
दिल दश्त में भटकता रहा ता उम्र
नफरतें  मिली मुहब्बत न मिली।
मेरी अदाकारी सब ने  पसन्द की
बस मुझको कभी शुहरत न मिली।
यह ज़िन्दगी रास आने लगी जब
तब मौत से भी मोहलत न मिली।   

Thursday, September 4, 2014

उन के भरोसे को कभी भी झूठा नहीं कहा
उनकी ख़ातिर हमने क्या क्या नहीं सहा।
हज़ार क़यामतें गुज़र गई थी सर पे हमारे
छू ली एक एक कर हमने भी सारी इंतिहा।
बिछड़ा मुहब्बत में मुझे इल्ज़ाम देकर वो
दिल में  मेरे कभी था जो ख़ुदा बनकर रहा।
हर ग़ाम पर मिला मुझे खुशबुओं का सफर
उसने लेकिन फिर मुझे  अपना नहीं कहा।
ख़ुदा किसी को कभी इतना ज़लील न करे
ज़माने ने भी जाने क्या क्या न हमे कहा।    


Saturday, August 23, 2014

वो झुर्रियां तो अपनी आईने को दिखाते हैं
तल्ख़ियां ज़िंदगी की खुद से ही छिपाते हैं।
क़िस्सा ए ज़िंदगी हम इस तरह सुनाते हैं
दिन तो गुज़रता नहीं साल गुज़र जाते हैं।
संभाले रखते हैं  अपनी ख़ुदी को भी  हम
वक़्त को भी रफ़्तार हम ही तो दिलाते हैं।
बुलंद हौसलों की मिसाल है  यह भी एक
उदासियों में भी हम तो ठहाके लगाते हैं।
यूं बात करते हैं पुर- तपाक लहज़े से हम
अपनी ख़ामियां भी हम खुद ही गिनाते हैं।

Thursday, August 21, 2014

वक़्त जब यह गुज़र जाएगा 
लम्हा जाने ये किधर जाएगा। 
यक़ीन क्या इन हवाओं का 
नशा तो नशा है उतर जाएगा। 
दवा की अब ज़रूरत न रही 
ज़ख़्म पुराना है  भर जाएगा। 
दरीचा खुला न कोई अगर 
दर्द अंदर से तन्हा कर जाएगा। 
इस दस्तूर से वाक़िफ़ हैं सब 
आया है जो लौट कर जाएगा। 
चराग़ रोशन लिए हाथ में 
कौन ख़ुद की क़ब्र पर जाएगा।   
आज़कल पिछले दस दिनों से मैं सपत्नी बैंगलोर अपने बड़े बेटे
बहू और बच्चों के पास आया हुआ हूँ ,यहाँ का मौसम लाजवाब है
तरसेंगे ऐसे मौसम को हम
याद आएंगे लम्हे ये हरदम
आँख खुलेगी जब  रातों में
ढूँढा करेंगे ख़ुद  को ही हम।

Thursday, August 7, 2014

खुशबु बिकने लगी जब से  बाज़ारों में
नाम लिखवा दिया हमने खरीदारों में।
ख़बर छप गई सुबह  जब अख़बारों में
खलबली सी मच गई मेरे सब यारों में।
टुकड़े टुकड़े होकर ढह गया मक़ान वह
सपने सुनहरे सजे थे जिसके आसारों में।
खता तेरी थी न ही खता मेरी थी  कभी
मज़ा फिर भी आता था उन तक़रारों में।
शर्त लगाते हैं तूफानों से तो अब भी हम
जान बहुत है अब भी दिल की दीवारों में।
मेरे पूजते पूजते ही देवता बन गया वह
कोई तो हुनर होगा हम जैसे फ़नकारों में। 
  

Saturday, August 2, 2014

ख़ूबसूरती कभी बेनज़र नहीं होती
मुहब्बत की कोई डगर नहीं होती।
बहुत शौक़ था महकने का उसको
फूल की ही उम्र  मगर नहीं  होती।
मुहब्बत तो पलकर बड़ी हो जाती
छत नीची घर की अगर नहीं होती।
ज़ख्म भी भर जाते  सारे कभी के
निशानी तुम्हारी  अगर नहीं होती।
 उम्र भर का हिसाब न मांग मुझसे
साथ तेरे अब तो गुज़र नहीं होती।
फ़िक़्रे दुनिया ने तोड़ दिया मुझको
अब मुझे मेरी ही ख़बर नहीं होती।
 ऐसे भी कुछ लोग हैं इस ज़हान में
जाम बग़ैर जिनकी सहर नहीं होती।


  

Monday, July 28, 2014

उन जैसा कोई भी नहीं दूसरा देखा
उन्हें जब भी देखा अलग सा देखा।
क्यूं न सज़दा करें दरगाहे हुस्न में
मैंने  उनमें सदा अपना ख़ुदा देखा।  

Sunday, July 20, 2014

साक़ी बदल रहे हैं मैक़श भी बदल रहे हैं
नज़रों से पिलाने वाले नज़रें बदल रहे हैं।
साथ चल रहे हैं तो कुछ तन्हां चल रहे हैं
शहरों की तेज़ धूप में तन मन जल रहे हैं।
खता हुई थी हम से  एक भूल से ही सही
किस्से अब तक भी ज़ुबां पे मचल रहे हैं।
फूल से पत्थर बने फ़िर खंज़र बन  गए
उम्मीद के साये में वो अब भी पल रहे हैं।
क़ैसी बहार आई कि पत्ते भी झुलस गए
जाने कैसे  दर्द अब  दिलों  में ढल रहे हैं।
रंग अपना फ़लक़ ने बदल दिया जब से
दरिया भी किनारे अपने तो बदल रहे हैं।
गलत रस्तों पे चलके नस्लें मैली हो गई
कपडे पे दाग़ आते ही कपडे बदल रहे हैं।
ड़ाल रक्खा है मुक़द्दर ने उनकी राहों में
एक वो  हैं  हम से ही बचकर चल रहे हैं। 
   

Tuesday, July 8, 2014

बेशक़ टूटा फूटा है पर मेरी अमानत है
दिल  मेरा फ़िर भी बहुत खूबसूरत  है।
मीरा है कृष्ण की कभी है यह  कबीरा
ख़ुदा जाने इसमें ही ऐसी क्या सिफ़त है।
हमनवी है  सबका , सबका हमनशीं है
तमन्ना है दिलों की दिलों की चाहत है।
उदासियों में सब की रंग भर देता है यह
इसकी दिवार पर लिखी ऐसी इबारत है।
इसकी अदाओं पे जाँ छिड़कता हूं मैं भी
कभी मुहब्बत है तो कभी यह इबादत है।
फिर भी जाने  इतना  यह बेसदा क्यों है
ख़बर नहीं  इस पर किस की हुकूमत है।
हैरान हूँ सोच कर  लेकिन  मैं यह बहुत
क्यों टूट जाना इस बेज़ुबां की किस्मत है।

Thursday, July 3, 2014

मेरी ज़मीन आसमान संभाल लेती है
ज़ियादा ख़ुशी आंसू निकाल देती है।
माना कि नूर चांद में अपना है मगर
मेरी नज़र उसे हुस्नो- ज़माल देती है।
देखने का नजरिया  सबका अलग है
ज़िन्दगी  तो बहुत से सवाल देती है।
छोड़कर जाती है  न ही जीने देती है
ज़िन्दगी मुश्क़िल में हमें डाल देती है।
देने पर आती है तो फिर चूकती नहीं
ज़िन्दगी ख़ुशियां भी बेमिसाल देती है।
सही वक़्त पे सही क़दम न उठाया तो
जंज़ीर भी  पाँव में फ़िर  डाल देती है ।
मुहब्बत की क़शिश भी क्या क़शिश है
तस्वीरों में भी खुशबु वो डाल देती है।
मुहब्बत से भरी हुईबस एक निगाह ही
पूरी ज़िन्दगी को ही कर निहाल देती है।   

Wednesday, July 2, 2014

मिठास जुबां में घुल जाये तो ज़िंदगी महका देती है
मिठास खून में घुल जाये  तो ज़िंदगी मिटा देती है। 

Sunday, June 29, 2014

उनके तेवरों से मौसम ए हाल जान लेते हैं
क्या है दिल में उन के हम पहचान लेते हैं।
आँखों में कुछ, दिल में कुछ, ज़ुबां पे कुछ
इतनी  शिद्दत  से मेरी  तो वह जान लेते हैं।
गुज़र जाती हैं सर पर से मेरे क़यामते  इतनी
जब रूठने की  मुझ से दिल में ठान लेते हैं।
नखरे हैं  उन में और नज़ाकतें भी हैं  इतनी
अदा से मेरे सब्र का वह  इम्तिहान लेते हैं।
डूबने को होता हूं जब भी आँखों में उनकी
आदतन वह चेहरे पर  दुपटटा तान लेते हैं।
देख कर के उन की  अदाओं के सिलसिले
ज़िंदगी तो ज़िंदा दिली है, हम मान लेते हैं।
लौ लग जाती है उससे  इस दिल की जब 
मीरा तड़पती है तो कृष्णा भी जान लेते हैं।
  

Sunday, June 22, 2014

खुलकर हँसे हुए इक ज़माना हो गया
दर्द ही अब तो आबो- दाना हो गया।
हवा नहीं आती  अब घर के अन्दर
भले ही मौसम बड़ा सुहाना हो गया।
ग़फ़लत में सच  निकल गया मुंह से
मुक़ाबिल सारा ही ज़माना हो  गया।
फ़िदा था मेरी  वो  हर एक बात पर
किस्सा ही अब तो पुराना  हो गया।
मांग ली उसने  तस्वीरें अपनी  सब
ख़त्म उनसे मिलना मिलाना हो गया।
नापी है  मैंने दर्द  की गहराई हाथ से
हद से ज़्यादा उसका ठिकाना हो गया
वो दिल बुझ गया जिस पर गुमान था
दिल ज़ख्मों का ताना बाना  हो गया।  
 

Thursday, June 19, 2014

तपते मौसम  की गर्म हवाएं मार डालेंगी
तूफ़ान न गुज़रा अगर सदाएं मार डालेंगी।
मोहब्बतें  मारेंगी न नफ़रतें मारेंगी  हमें
ख़ामोश निगाहों की सदाएं मार डालेंगी।
छोड़कर न जाएगी न जाने देगी ज़िंदगी
ज़िंदा रहने की हमें दुआएं  मार डालेंगी।
हर किसी से प्यार करना अपनी आदत है
क्या करें हमें हमारी वफ़ाएं मार डालेंगी।
खुलासा हाले दिल का होता तो अच्छा है
वरना उनके हंसने की अदाएं मार डालेंगी।
शहर से रौनक़े- वफ़ा ही चली गई अगर
दिल पे दर्ज़  उनकी ज़फ़ाएं मार डालेंगी।
सूरते हाल बिगड़ती चली गई अगर यूं ही
आंच देती ये दर्द की हवाएँ मार डालेंगी। 

Sunday, June 1, 2014

खुशबु की मानिंद बिखरते चले गए
हम उम्र के साथ निखरते चले गए। 
दिन में लड़ाते रहे  आँख सूरज  से
रात में चांदनी से लिपटते चले गए।
खुशबु वही, फूल वही, हम वही रहे
मिज़ाज वक़्त का बदलते चले गए।
उड़ाके रंग दिल से आँखों से होंठो से
क़रीब से ज़िंदगी के गुज़रते चले गए।
लाख बवंडर मचते रहे सीने में मगर
समंदर बनकर हम मचलते चले गए।
मोहब्बत को मुझ पर पूरा यक़ीन था
तालाब उसकी  पूरी करते चले गए।
अंगड़ाइयाँ आज़ भी महकती हैं मेरी
आँधियों को खबर ये करते चले गए।
वो तकते रहे  हसरत लिए हुए  हमें
हम शमां की तरह पिघलते चले गए।   

Friday, May 23, 2014

हम अपने गुमान में कब तक रहते
दूसरे के मक़ान  में कब तक रहते।
एक दिन ज़मीन पर आना ही  था
हम  आसमान में कब तक रहते।
दिल में नफरतों का समंदर लेकर
उनके दरमियान में कब तक रहते।
 रास न आई हवाओं  की सवारी
हम ऊँची उड़ान में कब तक रहते।
बहाव हवाओं का इतना तेज़ था
परदे  दरमियान में कब तक रहते।
कभी महकते थे  संग में फूलों की
ख़ुश्बु ए बागान में कब तक रहते।
दिल में भी  शोर शराबा बहुत था
तन्हां  बियाबान में कब तक रहते।
बहुत लिया सब्र का इम्तिहान हमारे
हर वक़्त इम्तिहान में कब तक रहते।
बच्चे का सा बिगड़ा दिल है अपना
किसी के एहसान में कब तक रहते। 

Friday, May 9, 2014

सदियां गुज़र गई उन्हे वार करते
किस किस पर हम एतबार करते।
खरा न उतरा कोई अपने वादे पर
इश्क़ का हम  कैसे इज़हार करते।
बस्ती वही है लोग भी सब वही हैं
दिल को हम कितना बेक़रार करते।
आदत कहूं लत कहूं य बेबसी इसे
उम्र गुज़र गई अपनी तक़रार करते।
तस्वीरों के दाग़ उभर आया करते हैं
आईने को हम ही क्यूँ दाग़दार करते।
सिखा  दिया ज़माने ने बेअसर रहना
वरना  दुनिया  हम ही गुलज़ार करते।
आँखों में इंतज़ार का मंज़र रह गया
ज़िंदगी को कितना हम दुशवार करते।
खाते हैं क़समें भी हम बहुत ही कम
वो कहते हैं यूं तो नहीं इज़हार करते।
मेरी भी सुन लेगा कभी तो ख़ुदा भी
तमन्नाओं को नहीं हम बीमार करते।

Thursday, March 20, 2014

सुबह सवेरे हम ईमानदार होते हैं
दिन के वक़्त हम रोज़गार होते हैं।
बदलता रहता है क़िरदार हमारा
शाम ढले हम घर परिवार होते हैं।
और दिन हमको फ़ुर्सत नहीं होती
छुट्टी के दिन हम गुलज़ार होते हैं।
भीड़ से जब, छंट जाते हैं हम तो
वक़्त की फ़िर हम रफ्तार होते हैं।
चाहत , वफ़ा , दोस्ती , आशिक़ी
इन रंगों के फिर तलबगार होते हैं।   

Sunday, February 23, 2014

किसी की साख़  किसी के नाम हो गई
हमारी वहशत हम पर इल्ज़ाम हो गई।
इश्क़ में डूबकर, मुहब्बत जिसने  की
मुहब्बत अक्सर वही  बदनाम हो गई।
महफ़िल में इस क़दर रु ब रु हुए वह
उनकी अदा पर चरचा तमाम हो  गई।
दीवानगी का सबने इज़हार यूँ  किया
महफ़िल सारी उनके ही नाम हो गई।
हमें कड़े वक़्त का ही अंदाज़ न हुआ
उजालों में यह तो लगा शाम हो गई।
बहुत ढूँढा ,मुक़द्दर का पता न मिला
मुस्कराते रहे हर शय नीलाम हो गई।
उम्मीद पर ही जिए जा रहे हैं हम तो
बोझ उठाते हुए उम्र तमाम  हो गई।
टूट तो गए हम मगर झुके नहीं कभी
मेरी खुददारी  ही  मेरा इनाम हो गई।
सुपुर्द किया ख़ुद को जब से ख़ुदा के
ज़िन्दगी ही मेरी अब क़लाम हो गई।
       क़लाम - कविता
  
 

Saturday, February 15, 2014

रंगो खुशबु से गुलज़ार हम भी हैं
इस ज़माने के क़िरदार हम भी हैं।
बदलते रहे ,मौसम के साथ  हम
उसूलों पर क़ायम यार हम भी हैं।
तुझे हुस्न की दौलत मिली है तो
हुस्न के नाज़- बरदार हम भी हैं।
अपनी कोई  निशानी तू देदे मुझे
तेरी खुशबु के तलबगार हम भी हैं।
छुप छुप के चलती हैं हवाएं यहाँ
अब इतने तो समझदार हम भी हैं ।
बेवज़ह शाम तक तू भटकता रहा
हवाओं के तो कर्ज़दार हम भी हैं।
तज़वीज़ करदे अब कोई सज़ा मुझे
तेरी बेबसी के गुनहगार हम भी हैं।
खोटे सिक्के सही पर वज़नी हैं हम
उसकी रहमत के हक़दार हम भी हैं। 



 

Friday, January 31, 2014

मुक़रर है  दिन  मौत का तो  एक
वक़्त न कभी भी वो टला करता है।
पता है  मौत ने आना है एक दिन
अपना क़फ़न कौन सिला करता है। 

Monday, January 20, 2014

आइने ने बहुत  ख़ूबसूरत लगने की गवाही दी थी
कोई मुझे देखा करे मैंने किसी को हक़ ये न दिया।
कभी वक़्त रहते इन तन्हाइयों का अंदाज़ न हुआ
मेरे ग़ुरूर ने ही मुझे किसी आँख में रहने न दिया।
रह रह कर के  कईं सिलसिले याद आ रहे हैं आज
क़ाश भूले से ही  किसी महफ़िल में रह लिए होते।
आज वक़्त ही वक़्त है,जो काटे से भी नहीं कटता
कभी मोहलत ले, किसी को अपना कह लिए होते।
 

Saturday, January 18, 2014

यारियां  निभाने का वक़्त न मिला
सिलसिले बनाने का वक़्त न मिला।
भाग दौड़ में ही गुज़र गई ज़िन्दगी
ज़रा सा सुस्ताने का वक़्त न मिला।
वक़्त जो कटना था वो भी कट गया
दिल को रिझाने का वक़्त न मिला।
जिससे जीते हार भी उसीसे मान ली
हाले-दिल सुनाने का वक़्त न मिला।
ज़रा सी बात पर ही जो  रूठ गये थे
फिर उन्हें मनाने का वक़्त न मिला।
दिल की दिवार पर गम कि सीलन है
कभी धूप दिखाने का वक़्त न मिला।
तस्वीर तो बना ली थी हमने कब की
 फ्रेम में ही सजाने का वक़्त न मिला।
कोई दौर तो आये, मैं ज़िन्दा रह सकूँ
कभी रस्में निभाने का वक़्त न मिला।
आइना हूँ मैं, आइना ही रहूंगा हमेशा
इतना भी  बताने का  वक़्त न मिला। 
 

Sunday, January 5, 2014

अगर किसी का अच्छा मैं करता नहीं  हूँ
तो किसी का  बुरा भी  मैं  करता नहीं हूँ।
मैं समय हूँ ,मैं सब ही के साथ चलता हूँ
किसी के कहने पर बस मैं रुकता नहीं हूँ।
लालच, ईर्ष्या, द्वेष ,छल ,कपट या झूठ
किसी से  कभी मैं ,वास्ता रखता नहीं हूँ।
मैं  नफ़ा- नुक़सान  जैसे शब्दों से परे  हूँ
सर्दी ,गर्मी ,बारिश से भी  डरता नहीं हूँ ।
वो कहते हैं कि  समय ख़राब चल रहा है
मुक़द्दर किसी का मैं पर बदलता नहीं हूँ।
ऐ दुनिया वालों मुझको कोई दोष न दो
मैं किसी से भी लेना देना रखता नहीं हूँ।