Sunday, September 7, 2014

अपनों से  कभी फ़ुरसत न मिली
अपनों से पर अहमियत न मिली।
दर्द  तो हल्का कर दिया वक़्त ने
ख़ुशी भी कभी सलामत न मिली।
ज़िंदगी का अंदाज़ निराला देखा
मेरे हिस्से की ही ज़रूरत न मिली।
खुश्बुएं मिली लाज़वाब हर क़दम
ख़्वाब भी मिले हक़ीक़त न मिली।
दिल दश्त में भटकता रहा ता उम्र
नफरतें  मिली मुहब्बत न मिली।
मेरी अदाकारी सब ने  पसन्द की
बस मुझको कभी शुहरत न मिली।
यह ज़िन्दगी रास आने लगी जब
तब मौत से भी मोहलत न मिली।   

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