Sunday, June 1, 2014

खुशबु की मानिंद बिखरते चले गए
हम उम्र के साथ निखरते चले गए। 
दिन में लड़ाते रहे  आँख सूरज  से
रात में चांदनी से लिपटते चले गए।
खुशबु वही, फूल वही, हम वही रहे
मिज़ाज वक़्त का बदलते चले गए।
उड़ाके रंग दिल से आँखों से होंठो से
क़रीब से ज़िंदगी के गुज़रते चले गए।
लाख बवंडर मचते रहे सीने में मगर
समंदर बनकर हम मचलते चले गए।
मोहब्बत को मुझ पर पूरा यक़ीन था
तालाब उसकी  पूरी करते चले गए।
अंगड़ाइयाँ आज़ भी महकती हैं मेरी
आँधियों को खबर ये करते चले गए।
वो तकते रहे  हसरत लिए हुए  हमें
हम शमां की तरह पिघलते चले गए।   

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