Monday, January 20, 2014

आइने ने बहुत  ख़ूबसूरत लगने की गवाही दी थी
कोई मुझे देखा करे मैंने किसी को हक़ ये न दिया।
कभी वक़्त रहते इन तन्हाइयों का अंदाज़ न हुआ
मेरे ग़ुरूर ने ही मुझे किसी आँख में रहने न दिया।
रह रह कर के  कईं सिलसिले याद आ रहे हैं आज
क़ाश भूले से ही  किसी महफ़िल में रह लिए होते।
आज वक़्त ही वक़्त है,जो काटे से भी नहीं कटता
कभी मोहलत ले, किसी को अपना कह लिए होते।
 

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